गुरुवार, 10 मार्च 2011

Anurodh

इस बार होली पर सूखे रंगों का प्रयोग करें, पानी का अपव्यय न करें, पर्यावरण मित्र होली का संकल्प लें आदि-आदि इत्यादि । 20 मार्च को इस वर्ष होली का त्यौहार मनाया जाना है और इसी को ध्यान में रखते हुए सभी अखबारों, पत्रिकाओं एवं सोशल नेटवर्किंग साइट्स के पन्ने नित नूतन उक्त शीर्षकों से पटते जा रहे हैं । जिधर देखो उधर एक ही राग होली-होली-होली और जल संरक्षण का सुझाव, पजामें-नाड़े की जोड़ी की तरह नज़र आ रहे हैं, और खास बात ये है कि ये एक आम बात हो गई है, मगर फिर भी कहीं कोई असर नहीं । इतने व्याख्यान, आह्वान, अनुरोध के बावजूद किसी के कान पर जूं भी रेंगी हो तो क्या बात!
भारत में साक्षरता का प्रतिशत साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है (और स्वकेन्द्रीयता का भी ), मगर जागरूकता ! ये क्या है ? अब तक जान पाना मुश्किल ही है । अगर साक्षरता के बढ़ते प्रतिशत के साथ साथ देश के पढ़े लिखे गंवारों में जागरूकता आ जाती तो शायद देश के विकासशील से विकसित होने में लगने वाले समय के बारे में की गई सारी भविष्यवाणियाँ गलत साबित होती और देश भविष्यवाणियों और उम्मीदों से आधे वक्त में ही विकसित हो जाता ।
खैर यहाँ मेरा उद्देश्य देश के विकास का आकलन करना नहीं है, मैं तो सिर्फ और सिर्फ देश के प्रबुद्ध वर्ग के माननीय लेखकगण से ये अनुरोध करना चाहता हूँ कि वे कृपया जागरूकतावादी कोई भी लेख लिख कर अपना समय बर्बाद न करें और उसे प्रकाशित करके कागज़ काले न करें । क्षमा कीजिएगा मगर लेख लिखने से तो किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ना ये बात निश्चित है । हाँ मगर न लिखने में पर्यावरण हित निहित है । मैं यहाँ पर्यावरण प्रेमी के तौर पर आप सभी बुद्धिजीवियों से ये विनम्र अनुरोध करता हूँ कि आप भी लेख न लिखकर पर्यावरण संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान दें । यदि आप में से कोई एक भी मेरे इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए अपनी अंकशायिनी लेखनी को विराम दे दें, तो मैं और मेरी बेचारी प्रकृति इस उपकार से अनुग्रहित होंगे ।


धन्यवाद !


भारत माता की जय !