कहा जाता है
कि गुरू जहाँ बैठता है वहाँ के अच्छे फल नहीं देता मगर जहाँ देखता है उन भावों के फलों
की शुभता में वृद्धि करता है । ज्योतिष में गुरू की दृष्टि को अमृत के समान माना गया
है । वहीं शनि के बारे में कहा जाता है कि शनि जहाँ भी बैठता है उस भाव को बढ़ाता है
मगर जहाँ दृष्टि डालता है वहाँ अपने विनाशकारी प्रभाव देता है या कहें की उस भाव से
संबंधित शुभ फलों में कमी करता है और अशुभता की वृद्धि करता है । ज्योतिष का ये नियम
प्रायः देखने सुनने में आता रहता है मगर इसके पीछे मूल कारण क्या हो सकता है ये कोई
नहीं बताता । मैनें पाया कि अगर हमें इस प्रश्न का सही जवाब चाहिये तो इसके मुख्य तत्वों
गुरू और शनि के मूल स्वभाव की पड़ताल की जानी बेहद जरूरी है और महत्वपूर्ण भी । अगर
हम गुरु और शनि की नैसर्गिक प्रकृति को ध्यान में रखें तो हमें इसका जवाब आसानी से
मिल सकता है ।
पहले गुरू की बात करें तो गुरू की नैसर्गिक प्रकृति बड़ी सौम्य
है । गुरू अपनी अर्जित की हुई सारी चीजें चाहे वो ज्ञान हो या सम्पत्ति अपने शिष्यों
और समाज कल्याण के लिए लोगों में बाँट देता है । वो स्वयं झोपड़े में रहते हुए कठिन
तपस्या करता है और अपने पास आने वालों को महलों के आशीर्वाद और वरदान दे देता है ।
यही शुक्राचार्य ने भी किया सारी भौतिक सम्पत्तियों का स्वामित्व होने पर भी अपनी सम्पत्ति
अपने शिष्यों और अनुयायियों में बाँट दी और खुद तपस्या में लीन हो गए । गुरू के मन
में समाज सेवा का भाव इतना प्रबल होता है कि उसे अपने परिवार या घर की कोई खास चिंता
नहीं होती उसकी प्राथमिकता उसके शिष्यों और समाज की प्रगति होती है । शायद इसीलिये
ज्योतिष में गुरू ग्रह के बारे में कहा गया है कि ये जहाँ बैठता है वहाँ की वृद्धि
नहीं करेगा मगर जहाँ देखेगा वहाँ की निश्चित रूप से वृद्धि करेगा ही ।
अब आती है शनि की बात, तो शनि का स्वभाव अंतर्मुखी है, इसके स्वभाव
में स्वार्थ, ईर्ष्या, कपट जैसे दुर्गुण देखने को मिलते है जिसके कारण शनि जिस घर में
बैठता है पहले उसकी वृद्धि करता है और जिस घर में दृष्टि देगा उसे विनष्ट कर देगा ।
क्योंकि शनि दूसरे की टाँग खींचकर आगे बढ़ने वाला ग्रह है । ये सबसे ज्यादा आलसी और
धीरे चलने वाला भी है इसलिये ये अपने इन दुर्गुणों के प्रभाव भी उन भावों में दे देगा
जहाँ दृष्टि डालेगा । और उस भाव से संबंधित फल में विलम्ब पैदा कर देगा । शनि जहाँ
बैठता है वहाँ अपने स्वार्थी स्वभाव के कारण उस भाव की वृद्धि करने लगता है उससे संबंधित
फलों में शुभता देने लगता है मगर विलम्ब तो होगा ही क्योंकि शनि की रफ्तार ही धीमी
है, यह आलसी भी है इसलिये फल देगा जरूर मगर आराम से ।