मंगलवार, 26 मई 2015

ग्रीष्म

हे ग्रीष्म !
तुम नाराज़ हो बहुत
अब के बरस
मैं समझता हूँ
इस नाराज़गी का कारण भी
बरसती बूंदों ने जो अतिक्रमण किया है
तुम पर,
मगर अब हर बून्द
तुम सुखा चुकी
तुम्हारा बदला पूरा हुआ
अब नवीन सृजन के लिए
तुम्हारा शांत होना ही
प्रकृति का नियम है
और निर्दोष जीवों की प्रार्थना भी
यदि सम्भव हो सके
तो अपने क्रोध को ज़रा कम करना
ज़रा संयम करना ।