सड़क के किनारे भीड़ में तन्हा खड़ा "टेसू" । मायूस सा फूलों से लदा हुआ, बस इस इंतज़ार में कि कोई तो आये और माँग ले एक फूलों कि बौछार, कि कोई तो आये और माँग ले रंगों कि फुहार, कोई तो आये समेटने को फैले हुए ये फूल हजार, मगर नहीं... कोई नहीं आता... कोई भी नहीं आता करीब, सभी गुज़र जाते हैं ज़रा दूर से ही, और ये बूढ़ा पेड़ खो जाता है पुरानी यादों में जब फाल्गुन का महीना लगते ही आ जाते थे सभी... बच्चे और बूढ़े भी, और चुन लेते थे फूल कई सारे... और चेहरों पर बड़ी ही रंगीन सी मुस्कुराहट लिए लौट जाते थे अपने घरों को... फिर ये सिलसिला खत्म होता गया... और वक्त के साथ... टेसू गुमनाम हो गया... कभी निकलो उस सड़क से तो गौर करना... टेसू अब भी बूढ़ी आँखें उसी सड़क पर टिकाए खड़ा है, इंतज़ार कर रहा है...।
अव्यक्त…! वास्तव में अव्यक्त एक प्रदर्शनी है मेरे विचारों की, अक्सर मेरे भीतर कई विषयों को लेकर उठने वाले ज्वार भाटे को मैं महसूस करता हूँ, मगर ये मेरे भीतर ही जन्म लेता और खत्म हो जाता है कभी कभी कुछ बेहद संवेदनशील और आक्रोशित होता है तो कभी एक गंभीर और शांत दार्शनिक की तरह । इन्हीं कुछ परेशानियों के चलते इस "अव्यक्त" ज्वार भाटे को ब्लाग के रूप में आप सभी के समक्ष व्यक्त करने का मेरा प्रयास ही "अव्यक्त" है ।
सोमवार, 5 मार्च 2012
Gumnaam Tesu
सड़क के किनारे भीड़ में तन्हा खड़ा "टेसू" । मायूस सा फूलों से लदा हुआ, बस इस इंतज़ार में कि कोई तो आये और माँग ले एक फूलों कि बौछार, कि कोई तो आये और माँग ले रंगों कि फुहार, कोई तो आये समेटने को फैले हुए ये फूल हजार, मगर नहीं... कोई नहीं आता... कोई भी नहीं आता करीब, सभी गुज़र जाते हैं ज़रा दूर से ही, और ये बूढ़ा पेड़ खो जाता है पुरानी यादों में जब फाल्गुन का महीना लगते ही आ जाते थे सभी... बच्चे और बूढ़े भी, और चुन लेते थे फूल कई सारे... और चेहरों पर बड़ी ही रंगीन सी मुस्कुराहट लिए लौट जाते थे अपने घरों को... फिर ये सिलसिला खत्म होता गया... और वक्त के साथ... टेसू गुमनाम हो गया... कभी निकलो उस सड़क से तो गौर करना... टेसू अब भी बूढ़ी आँखें उसी सड़क पर टिकाए खड़ा है, इंतज़ार कर रहा है...।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)