मेरे शहर के लोग अब,
हिन्दू औ' मुसलमान हो गए
पहले धर्म ग्रंथ थे,
अब गीता कुरान हो गए,
बदलने लगी आबो हवा इस तरह
मोहल्ले हिन्दुस्तान पाकिस्तान
हो गए,
खेल के मैदान में तलवारें खिंचनें
लगी
यारी दोस्ती, प्यार मोहब्बत लहुलुहान
हो गए
खुदा जाने इस गर्दिश में इंसान
कहाँ खो गए
भगवान जाने इस भीड़ में इंसान
कहाँ खो गए...
- विश्वास शर्मा
(२००७ में मेरे शहर नरसिंहगढ़
में हनुमान जयंती पर हुए साम्प्रदायिक दंगे के वक्त १८ फरवरी २००७ को लिखी गई ।)
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