गुरुवार, 4 जुलाई 2013

इस बरसात में...

इस बरसात में...

मैंने देखा
कुछ बूँदें छोटी छोटी सी
बड़े अहतियात के साथ
उतरी एक पत्ते पे
और फिर धीरे से लुढ़क के
मिट्टी में कहीं खो गई... !

इस बरसात में...

मैंने देखा
पत्तों की ओट में छिपी
छोटी सी गौरैया
अपने नन्हे से पंख फैलाकर
दे रही थी छाँव
अपने बच्चे को... !

इस बरसात में...

मैंने देखा
कुछ बच्चे निकल पड़े थे
झरनों की तलाश में
अपने पापा के कांधों पर
होकर के सवार...!

इस बरसात में...

मैंने देखा
उसकी छत से टपकता पानी
रात रात भर जगाता था उसे
और सारा दिन बीत जाता
छप्पर पे पैबंद लगाने में...!

इस बरसात में...

मैंने देखा
कुछ अमीरज़ादों को
काँच बंद गाड़ी में बैठकर
सड़क किनारे खड़े
किसी गरीब पर
कीचड़ उछालकर
ठहाके लगाते हुए...!

अभी और भी कारनामें होंगे
बरसात अभी बाकि है बहुत...


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