गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

उपेक्षित राम...

                  कुछ दशकों पहले तक जब हम बहुत "विकसित और सभ्य" नहीं हुआ करते थे, तब दशहरा मैदान में मिट्टी का एक कुरूप पुतला बनाया जाता था, दस सिरों वाला और एक व्यक्ति को नीलवर्ण में श्रृंगारित कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का बेहद मोहक रूप दिया जाता था और लोग उस छवि को देखने दशहरा मैदान जाया करते थे । प्रभु राम के दर्शन करने, पूजन करने, उनके चरणों के स्पर्श का अद्भुत आनंद पाने । वो अपने साथ अपने अंतर में उस विशिष्ट पुरुष का अति मोहक स्वरूप बड़े उल्लास से ले आते थे, इस विश्वास के साथ की राम हमारे बीच ही हैं हमेशा । जब जब मेरे भीतर का रावण सर उठाने लगेगा राम आएंगे... जरूर आयेंगे ।
                  मगर बीते वक्त में विकास बड़ी तेज़ी से हुआ है और पीढ़ी दर पीढ़ी होता ही जा रहा है । अब रावण की सुंदरता महत्वपूर्ण है, उसका विशाल आकार भी जरूरी है और आतिशबाज़ी की मोहकता तो दर्शकों का विशेष आकर्षण है ही..... अब दशहरा मैदान की खचाखच भीड़ रावण को देखने जाती है। अब रावण बहुत दाद बटोरता है और बच्चे अट्टहास करते हुए घर लौटते हैं... हा.हा..हा... मैं हूँ लंकेश । और फिर पूरे साल वो छवि याद रखी जाती है नए वर्ष के रावण से तुलना के लिए ।


लेकिन राम... राम का क्या ?...
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                  राम भी आज रावण के कद के आगे कहीं खो गए हैं...उपेक्षित हो गए हैं । ज्यों ज्यों रावण का कद बढ़ता जा रहा है राम अदृश्य होते जा रहे हैं ।
                  बड़ा आश्चर्य ये भी है की हम रावण को इतना खूबसूरत और आकर्षक दिखाकर भी समाज में राम के आदर्शों की उम्मीद कर रहे हैं जो किसी भी तरह संभव नहीं ।

फिर भी आप सभी को आज रावण के उस आकर्षक पुतला दहन की बहुत शुभकामनायें.....।


हो सके तो राम की सुंदरता पर भी एक नज़र डालियेगा जरूर... जय श्री राम ।

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