बुधवार, 25 दिसंबर 2019

बदलते रहे


सालों साल हर साल बदलते रहे
कभी हाल तो कभी मकाम बदलते रहे
नहीं बदले तो सिर्फ हम ही न बदले
बाकी सब सरेआम बदलते रहे ।

कुछ ख्वाहिशों की कीमत इतनी चुकानी पड़ी
पूरे साल भर ही हम, नए नए मकाँ बदलते रहे ।

तुम्हें तो मालूम थी मेरी इफ़्फ़त ए नीयत
मग़र फिर भी, तुम इल्ज़ाम बदलते रहे ।

मेरी इल्तिज़ा थी कि मोहब्बत न बँटें कभी
और वो माशूको के नाम बदलते रहे ।

दोस्तों की महफ़िल का ये मंजर अजीब था
भीतर के शक बाहर के ज़ाम बदलते रहे ।

बातों ही बातों में उनका ज़िक्र न आ जाए कहीं
मिरे शातिर अल्फ़ाज़, बातों का सामान बदलते रहे ।