शुक्रवार, 5 जून 2020

पर्यावरण दिवस


आज पर्यावरण दिवस है । सभी दिशाओं से शुभकामनाओं का आवागमन हो रहा है । मगर शुभकामनाएं मनुष्य से मनुष्य तक ही हैं, पर्यावरण तक नहीं, क्योंकि कहीं से खबर है कि, खनन के लिए वन की ज़मीन आवंटित की गई है और कहीं से खबर है, किसी ने एक गर्भिणी हथिनी को निर्ममता से मार दिया है और आज तो ताज़ा तरीन खबर ये भी आई है कि, लुप्तप्राय डॉल्फिन जो लॉकडाउन के प्रभाव से गंगा में फिर से दिखने लगीं थीं, उनमें से एक को ज़िंदा जला दिया गया है । ये खबरें जश्न या बधाई के भाव तो पैदा नहीं कर सकती । मनुष्य अपने स्वार्थ को साधने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकता है, यह समय समय पर साबित हो चुका है । कभी मनोरंजन के लिए, तो कभी अपने भोग और विलास के लिए । हमने अब तक दोमुँहा सांप सुना देखा है, वास्तव में उसके दो मुँह नहीं होते, मगर ऐसा लगता है कि, मुँह दोनों ओर हैं । मनुष्य के साथ भी ऐसा कुछ मामला है, इसके तो दिखते भी नहीं और लगते भी नहीं मगर होते जरूर हैं । हम वातानुकूलित कक्ष में बैठकर पर्यावरण बचाने की योजनाएं तैयार करते हैं । पेट्रोल की कीमत पर रोज़ रोते चीखते हैं मगर ज्यादा माइलेज वाले वाहन इस्तेमाल नहीं करते, ज्यादा झाँकीबाजी वाले इस्तेमाल करते हैं । पेड़ काटे जाने पर सोश्यल मीडिया पर बड़ा ही दर्द ज़ाहिर करते हैं, मगर होटल में पेपर नेपकिन/टिश्यू पेपर ही इस्तेमाल करते हैं ।  वन्यजीव संरक्षण के नाम पर हमने बड़े बड़े राष्ट्रीय उद्यान घोषित किये हैं, मगर उनका मुख्य उद्देश्य अंधाधुंध पर्यटन से पैसा कमाना है । अब आप कहेंगे कि ये तो सरकार ने किया है, सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए, मगर आप फिर गलत हैं, आप माँग और पूर्ति के सिद्धांत को भूल रहे हैं । जब आप बेवजह बिजली जलाते हैं तो यह माँग पैदा करती है और अधिक उत्पादन की, जब आप किसी भी कारखाने में बनी कोई वस्तु बेवजह खरीदते हैं, तो यह माँग पैदा करती है उत्पादन की, और ऐसे कई उदाहरण हैं और सभी के मूल में एक ही बात है माँग बढ़ेगी तो उत्पादन होगा, उत्पादन होगा तो प्रकृति का दोहन भी होगा और दोहन के लिए विनाश भी होगा ये अकाट्य सत्य है और यही वास्तविक तथ्य है । एक भ्रम और भी दूर कर लें कि आप पर्यावरण या प्रकृति को बचा सकते हैं, आपको सिर्फ अपनी ही जाति की चिंता करनी चाहिए और सिर्फ इसीलिए पर्यावरण को संरक्षित करना चाहिए, क्योंकि हम इस पर्यावरण के एक छोटे से अंग मात्र हैं, हमारे होने के पहले भी यह समस्त रूप से व्याप्त था और हमारे बाद भी होगा, मगर अगर हम न सम्भले तो हम समाप्त हो जाएंगे । इसलिए इसे गंभीरता से समझें और जितना सरल हो सके उतना सरल जीवन जियें मेरा दावा है, आप ज्यादा बेहतर महसूस करेंगे ।
अंत में मेरी पर से आप सभी को पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं 🙏🏻
- विश्वास
इंटरनेट से साभार-


मंगलवार, 12 मई 2020

महँगे लोग

वो जो बड़ी सड़क पर,
कुछ हौंसले चले जा रहे हैं,
कुछ अखबारों, समाचारों ने कहा,
कई जिंदा हैं, कुछ मरे जा रहे हैं ।

कई कहानियाँ,
शहर दर शहर,
नंगे पाँव चल पड़ी हैं ।
पैरों के नीचे,
कुछ फ़टे पुराने सपनों के,
किस्से बिछाए जा रहे हैं ।

कुछ बचपन रोटी की आस में,
मीलों तक उछलते रहे,
अब खेल ये है कि,
एक दूजे के,
छाले सहलाये जा रहे हैं ।

सुना है साहब को,
उस ओर से गुजरना है ,
गाड़ी में,
नए पर्दे लगाए जा रहे हैं ।

कुछ सिसकियाँ हैं,
जो हवाओं में,
बह रहीं हैं सब तरफ,
साहब जिंदाबाद के,
नारे लगाए जा रहे हैं ।

गरीबी के बहुत सवाल,
शोर से करने लगे थे,
सुना है, विदेशों से,
महँगे लोग मँगाये जा रहे हैं ।