शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

पति बनाम हसबैण्ड


पने ख्यालों के बाग में टहलते हुए आज सुबह ही मेरी नज़र अचानक दूर कोने में चुपचाप बैठे इस विषय पर पड़ी और इसने अनायास ही अपनी मासूमियत से मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया । और फिर मेरी इस विषय से काफी देर तक गुफ्तगू होती रही । हमारी चर्चा का मुख्य बिन्दु पति पत्नी जैसी संज्ञा का आज के वक्त में सार्थक होना या न होना था । गुफ्तगू में क्या कुछ खास बातें हुई वो सारांशतः आगे उल्लेखित कर रहा हूँ ।

          अगर पति ‌और पत्नी शब्दों के गूढ़ अर्थों की बात की जाये तो पति का शाब्दिक अर्थ होता है स्वामी और पत्नी अर्थात् पति+नी से स्पष्ट है जो पति नहीं है ! मतलब जो स्वामी नहीं है । ये शेर और शेरनी की तरह ही है जिसमें एक शेर है और दूसरी शेर+नी है मतलब शेरनी है । मगर अगर आज महिलाओं के बढ़ते हुए वर्चस्व वाले समाज में, (मेरे ख्याल से इसे भारतीय समाज भी कह दिया जाये तो गलत नहीं होगा ।) इन शब्दों की सार्थकता की बात की जाए तो शायद ये बहुत ही अतार्किक शब्द साबित होंगे । इनके अर्थों के समझ आते ही महिला मोर्चा के उत्तेजित होने खतरा बराबर बना रहता है जिसका साइड इफेक्ट पति नाम के प्राणी पर होना लाज़मी है । कोई भी महिला आज के वक्त में ऐसे विवादास्पद अर्थ होने के कारण इन शब्दों से अलंकृत नहीं होना चाहेगी । और क्यों हो ? जब वो अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर घर परिवार की सभी ज़िम्मेवारियों को बखूबी निभा रही है तो वो पत्नी क्यों कहलाना चाहेगी भला ? वो दिन लद चुके जब पुरूष प्रधान समाज में पुरूष स्वयं को पति कहलाकर बड़ा ही गर्वित सा महसूस करते थे । अब तो ज़माना हसबैण्ड का है ।


          हसबैण्ड जिसके लिये हँसना मजबूरी है चाहे उसे कितना ही बजा लिया जाये । हसबैण्ड की कोई पत्नी नहीं होती, उसकी "वाईफ" होती है ये शब्द अंग्रेजी के ही एक और शब्द "नाइफ" से काफी मिलता जुलता है । खैर ये भाषा की अपनी परेशानी है और हमारी चर्चा से बाहर का विषय भी । अगर बीते ज़मानें की बात करें तो पति की विशेषता ये होती थी की उसका अपनी पत्नी पर पूरा नियंत्रण हुआ करता था, मजाल है कि पति की आज्ञा के बिना पत्नी घर की दहलीज़ के बाहर कदम भी रख दे ! और पत्नी की इतनी हिम्मत की वो अपने पतिदेव का नाम भी अपनी ज़बान से ले और इसीलिए ऐजी, ओजी जैसे सर्वनामों का प्रयोग प्रचलित था और बच्चे हो जाने के बाद फिर बच्चों के नाम से... गोलू के पापा, मुन्नी के पापा आदि । हसबैण्ड वाईफ के मामले में एकदम उल्टा ही देखने को मिलता है... हसबैण्ड को सर्वनामों का प्रयोग करना पड़ता है, जैसे बाबू, जानू, शोना, बेबी आदि आदि और वाईफ सीधे कहती है..... सुन बे !
          अब इन हालातों में पति और पत्नी शब्द सार्थक कैसे कहे जा सकते हैं यहाँ तो हसबैण्ड और वाईफ ही अधिक उपयुक्त मालूम होते हैं । और फिर भी अगर पति पत्नी शब्द का प्रयोग किया ही जाए तो संज्ञा के बदल देने की जरूरत है मतलब कि हसबैण्ड को पत्नी तथा वाईफ को पति की संज्ञा से नवाज़ा जाना चाहिये तभी इन शब्दों की सार्थकता सिद्ध होगी । वरना तो ये घर में बवाल का कारण ही बन सकते हैं । मेरे लिए ये बड़ी ही खुशी की बात है कि मैं अब तक कुआँरा ही हूँ, वरना पत्नी और हसबैण्ड शब्दों में से किसी एक का चयन करना बड़े ही धर्मसंकट की बात हो जाती और स्थिति कुछ यूँ बनती... "एक ओर अजगर ही लखि, एक ओर मृगराय । विकल बटोही बीच ही परयो मूर्छा खाए ।।"

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