अव्यक्त…! वास्तव में अव्यक्त एक प्रदर्शनी है मेरे विचारों की, अक्सर मेरे भीतर कई विषयों को लेकर उठने वाले ज्वार भाटे को मैं महसूस करता हूँ, मगर ये मेरे भीतर ही जन्म लेता और खत्म हो जाता है कभी कभी कुछ बेहद संवेदनशील और आक्रोशित होता है तो कभी एक गंभीर और शांत दार्शनिक की तरह । इन्हीं कुछ परेशानियों के चलते इस "अव्यक्त" ज्वार भाटे को ब्लाग के रूप में आप सभी के समक्ष व्यक्त करने का मेरा प्रयास ही "अव्यक्त" है ।
बुधवार, 25 दिसंबर 2019
बदलते रहे
गुरुवार, 20 जून 2019
रिश्ते
रिश्ते प्लास्टिक के तिरपाल की तरह होते हैं जो आपकी मूसलाधार बारिश से सुरक्षा करते हैं लेकिन वक्त की धूप के साथ पलते जाते हैं और फैल जाते है एक नज़र देखने में लगता है कि ये बृहद हो रहे हैं जबकि इनका आपसी तालमेल कमजोर होता जाता है और फिर अपने अपने अहंकार के मौसम की मार पड़ते पड़ते अंततः फट जाते हैं । और फिर कभी पहले की तरह नहीं हो पाते...
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,
टूटे पे फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ी जाय ।