रिश्ते प्लास्टिक के तिरपाल की तरह होते हैं जो आपकी मूसलाधार बारिश से सुरक्षा करते हैं लेकिन वक्त की धूप के साथ पलते जाते हैं और फैल जाते है एक नज़र देखने में लगता है कि ये बृहद हो रहे हैं जबकि इनका आपसी तालमेल कमजोर होता जाता है और फिर अपने अपने अहंकार के मौसम की मार पड़ते पड़ते अंततः फट जाते हैं । और फिर कभी पहले की तरह नहीं हो पाते...
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,
टूटे पे फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ी जाय ।
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