(
नवरात्र में माँ को समर्पित )
मैं देखता हूँ
वो बरसों से,
हर सुबह
सबसे पहले जाग जाती है,
सारे घर की सफाई के बाद नहाती
और फिर खाना बनाती है,
हम सब की कुशल क्षेम के लिए
घंटों तक फिर
भगवान को मनाती है,
और सबको खिलाने के बाद आखिर में
रात की बची
ठण्डी रोटियाँ खाती है,
जो दोस्तों के साथ
किसी रेस्तराँ में
जन्मदिन का जश्न मनाने के बाद,
हमने नहीं खाई थी ।
मगर कभी भी
कोई शिकायत नहीं करती ।
जिसकी अपनी कोई चाह नहीं,
और कभी कोई आह भी नहीं ।
बिना कुछ कहे वो सबकुछ सहती है
न जाने कैसे लेकिन
फिर भी खुश रहती है ।
ज़रा नमक कम पड़ जाने पर
साग में,
हमारी तीखी बातों को भी
मुस्कुराकर लेती है,
सोंचता हूँ कैसे
वो इतना कुछ करती है
हर बात, हर हालात को
चुपचाप सहती है ।
किसी बात फरमाइश पर जिसकी
कोई ना न सुनी
किसी बात को टालने जिसने
कभी कोई कहानी नहीं बुनी ।
जिसे अपनी छोड़
सबकी परवाह है,
हाँ हाँ सिर्फ हाँ
हर माँग पर
हर हाल में
जिसकी सिर्फ हाँ है
वो ही तो मेरी माँ है
हाँ वो ही तो मेरी माँ है...!
--विश्वास शर्मा
मैं देखता हूँ
वो बरसों से,
हर सुबह
सबसे पहले जाग जाती है,
सारे घर की सफाई के बाद नहाती
और फिर खाना बनाती है,
हम सब की कुशल क्षेम के लिए
घंटों तक फिर
भगवान को मनाती है,
और सबको खिलाने के बाद आखिर में
रात की बची
ठण्डी रोटियाँ खाती है,
जो दोस्तों के साथ
किसी रेस्तराँ में
जन्मदिन का जश्न मनाने के बाद,
हमने नहीं खाई थी ।
मगर कभी भी
कोई शिकायत नहीं करती ।
जिसकी अपनी कोई चाह नहीं,
और कभी कोई आह भी नहीं ।
बिना कुछ कहे वो सबकुछ सहती है
न जाने कैसे लेकिन
फिर भी खुश रहती है ।
ज़रा नमक कम पड़ जाने पर
साग में,
हमारी तीखी बातों को भी
मुस्कुराकर लेती है,
सोंचता हूँ कैसे
वो इतना कुछ करती है
हर बात, हर हालात को
चुपचाप सहती है ।
किसी बात फरमाइश पर जिसकी
कोई ना न सुनी
किसी बात को टालने जिसने
कभी कोई कहानी नहीं बुनी ।
जिसे अपनी छोड़
सबकी परवाह है,
हाँ हाँ सिर्फ हाँ
हर माँग पर
हर हाल में
जिसकी सिर्फ हाँ है
वो ही तो मेरी माँ है
हाँ वो ही तो मेरी माँ है...!
--विश्वास शर्मा
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