वो
लफ्ज़
जो कहीं अटक कर रह गया था
तु्म्हारे लबों पर,
हाँ... वही
जो कहीं,
तुम्हारे दाँतो से दबे होंठ के पीछे
दबा रह गया था,
और जब तुमने पलटकर देखा
आँखों की कोर से
झाँक रहा था,
उन्हीं बड़ी बड़ी
नमकीन हो चुकी आँखों से ।
मुझे इंतज़ार था उसका
तब भी
और
अब भी है,
उसी बेताबी के साथ ।
क्या हुआ ग़र
बालों ने अपना रंग खो दिया,
क्या हुआ ग़र
आँखे शीशों की मोहताज हो गई,
क्या हुआ...।
तुम्हारी मुस्कान तो आज भी वही है
बिल्कुल निर्दोष और नई,
जैसी तब थी
जब हम तुम
रेत में घरौंदे बनाया करते थे,
और तब भी जब
कॉलेज जाया करते थे,
फिर तुम अचानक
बिना कुछ कहे
बिना कुछ सुने,
मुझे तन्हा रास्ते में
मुन्तज़िर छोड़ गई ।
मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ,
बस उसी एक लफ्ज़ के इंतज़ार में..
तुम्हारे प्यार में...
हमारे प्यार में.....
-विश्वास शर्मा (05 Oct 2012 )
जो कहीं अटक कर रह गया था
तु्म्हारे लबों पर,
हाँ... वही
जो कहीं,
तुम्हारे दाँतो से दबे होंठ के पीछे
दबा रह गया था,
और जब तुमने पलटकर देखा
आँखों की कोर से
झाँक रहा था,
उन्हीं बड़ी बड़ी
नमकीन हो चुकी आँखों से ।
मुझे इंतज़ार था उसका
तब भी
और
अब भी है,
उसी बेताबी के साथ ।
क्या हुआ ग़र
बालों ने अपना रंग खो दिया,
क्या हुआ ग़र
आँखे शीशों की मोहताज हो गई,
क्या हुआ...।
तुम्हारी मुस्कान तो आज भी वही है
बिल्कुल निर्दोष और नई,
जैसी तब थी
जब हम तुम
रेत में घरौंदे बनाया करते थे,
और तब भी जब
कॉलेज जाया करते थे,
फिर तुम अचानक
बिना कुछ कहे
बिना कुछ सुने,
मुझे तन्हा रास्ते में
मुन्तज़िर छोड़ गई ।
मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ,
बस उसी एक लफ्ज़ के इंतज़ार में..
तुम्हारे प्यार में...
हमारे प्यार में.....
-विश्वास शर्मा (05 Oct 2012 )
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