गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

Nishaniyaan

तुम्हारी चाहतों के रंग में रंगे
रेशमी धागे से
कपड़े के टुकड़ों पर
किसी कोने में
बड़ी ही खूबसूरती के साथ
काढ़ा हुआ मेरा नाम,
आज भी
तुम्हारी याद दिलाता है ।

बड़े ही दिलचस्प दिन थे वो

जब
घरवालों से नज़रें बचाकर
कभी धूप में छत पर
तो कभी बाथरूम में जाकर
तुम बुना करती थी,
वो छोटे छोटे लम्हे
मोहब्बत के ।

एक अर्सा हो गया

मगर, आज भी
कपड़े के वही टुकड़े
यादों की तरह
हर वक्त
मेरे साथ होते हैं ।

कभी ओढ़ के चेहरे पे

आँखें बंद कर लेता हूँ,
तो कभी ये कोशिश
कि तुम्हारी छुअन का अहसास हो,
और कभी ये अहसास
कि तुम कहीं आसपास हो,
और फिर,
बेबसी में लिपटी
एक मुस्कुराहट,
निकल पड़ती है,
कभी लबों के छोर
तो कभी आँखों की कोर से,
फिर वही कपड़ों के टुकड़े काम आते हैं
जो मेरे पास होते हैं
हाँ... वही टुकड़े
जो तुम्हारी निशानियों की तरह
हर वक्त
मेरे साथ होते हैं...!

---विश्वास शर्मा

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